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Wednesday, September 9, 2020

प्रेम क्या हैं और कितने प्रकार का है

 प्रेम क्या हैं और कितने प्रकार का है :-

                                                            प्रेम करना मनुष्य सह सोभाव हैं| उसके समस्त विकास का मूल आधार भी प्रेम ही है प्रेम ही तो अमृत है, स्वभाविक है जिसके मन में जीव मात्र के लिए प्रेम है उसका अंतर करण निर्मल होता है ऐसा व्यक्ति रस मेहता का स्रोत बन कर विश्व को सुख-शांति से अपलावीत करता है इसके अनेक रूप और पर्यायवाची है करुणा, दया, वात्सल्य, सहानुभूति, स्नेह, प्यार, क्षमा तथा बलिदान प्रेम के चरम बिंदु है मानवीय गुणों का चर्मी कस प्रेम आत्मा का सोभाव है प्रेम सभी सीमाओं का उल्लंघन करके प्राणी मात्र के साथ तथा आत्मिक संबंध स्थापित कर लेता है प्रेम तत्व सोमरस की बातें हैं जिस का रसपान करके मनुष्य की चेतना और ऊर्जा जागृत होकर दिव्यता पालेती है प्रेम अलौकिक, लौकिक होता है जहाँ प्रेम सुरदास के शब्दों में प्रेम सर्वस्य अर्पण, त्याग और तपस्या है उसकी गति निर्बंध होती है प्रेम तत्व अनुभूति के लिए मानसिक धरातल की आवश्यकता होती है जो अपने प्रभाव से भी कठोर एवं दुर्जन को भी मधुराम सज्जन बना देता है ठीक वैसे ही चंदन का वृक्ष जो अपने पर आघात करने वाली कुल्हाड़ी को भी सुगंधित बना देती है प्रेम तो इसी प्यार का नाम है संसार के महर्षि ने प्रेम की अद्भुत शक्ति से संपूर्ण समाज को भ्रमित किया है उन्होंने प्रेम में ईश्वर के दर्शन किए उसे रस आत्मा बताया है

प्रेम क्या हैं और कितने प्रकार का है

प्रेम विधाता की सबसे सुंदर कृति है परंतु हर कृति को संभालना पड़ता है मूर्ति को देख है जब कलाकार ने उसे रचा होगा तब यह बहुत सुंदर होती है परंतु इसके पश्चात उसे संभाल नहीं गया मूर्ति के स्वामी ने इसकी देखभाल का कर्तव्य सही से नहीं निभाया और अब यह मूर्ति असुंदर लगने लगती है इसी प्रकार केवल कह देने से प्रेम, प्रेम नहीं हो जाता इसके लिए आप इसके कर्तव्य को पूर्ण करना होगा तो देश की रक्षा परिवार और संबंधों की सुरक्षा, संतान को संस्कार, जीवन साथी का आभार और यह कर्तव्य जब तक नहीं निभाओगे तो प्रेम से दूर होते जाओगे यदि प्रेम का अमृत पाना है तो कर्तव्य की अन्जली बनानी होगी|

जब भी प्रेम की बात आती है तो हम एक नायिका और नायक का चित्रण कर लेते हैं क्योंकि हम सब के साथ भी यही होता है ना पर क्या प्रेम नायक और नायिका के आकर्षण का बंधन है नहीं प्रेम तो परिवार से हो सकता है, माता-पिता, भाई-बहन से हो सकता है, शखा, मित्रों से हो सकता है, देश, जन्मभूमि के लिए हो सकता है, मानवता के लिए हो सकता है, किसी कला के लिए हो सकता है, इस प्रकृति के लिए हो सकता है पर प्रेम उस पन्ने पर लिखा ही नहीं जा सकता जिस पर पहले ही बहुत कुछ लिखा हो जैसे एक भरी मटकी में और पानी आ ही नहीं सकता यदि प्रेम को पाना है तो मन को खाली करना होगा अपनी इच्छाएं, अपना सुख, सब त्याग कर समर्पण करना होगा अपने मन से व्यापार हटा दो तभी प्रेम मिलेगा|

1.    दिव्य या ईश्वरी प्रेम :-

                            यह प्रेम ईश्वरी प्रेम कहलाता है जो ईश्वर या भगवान के प्रति होता है दिव्य प्रेम करने के लिए मनुष्य को ईश्वर की अपनी अंतरात्मा से प्रार्थना करनी पड़ती है जो अपने ईश्वर के प्रति प्रेम रखते हैं| मनुष्य इस प्रेम को पाने के लिए ईश्वर के लिए अपने आप को समर्पित कर देते हैं जो मनुष्य ईश्वर के प्रेम में डूबा रहता है| चाहे परिस्थिति कैसी भी हो सुख या दुख हो अपने ईश्वर की पूजा-पाठ या प्रार्थना करना कभी नहीं भूलते हैं| ईश्वर से प्रेम करने के लिए मनुष्य को शारीरिक जरूरत नहीं होती मनुष्य के अंतर्मन की जरूरत होती है जो ईश्वर से प्रेम करता है| उसके हृदय में प्रेम के अलावा किसी और मोह माया, लालच, किसी चीज की इच्छा के लिए कोई जगह नहीं होती है| जब मनुष्य ईश्वर से प्रेम करता है तो वह इस संसार के जन्म- मृत्यु चक्र से मुक्त हो जाता है| ईश्वर प्रेम बहुत से मनुष्य ने किया है जैसे मीरा ने श्री कृष्ण से प्रेम किया है जो विष राणा ने दिया वह अमृत बन गया, सूरदास जो जन्म से अंधे थे उन्होंने भी श्री कृष्ण से प्रेम और भक्ति की है ऐसे बहुत से उदाहरण है इस संसार में ईश्वरी प्रेम के यह प्रेम सबसे ऊपर और सबसे ऊंचा है| जब प्रेम में सबसे पवित्र प्रेम माना जाता है जो मनुष्य को ईश्वर से मिलाता है और उसमें विलियन हो जाता है| यह प्रेम हर कोई नहीं कर सकता हैं इस प्रेम के लिए अपने मन से सब को त्यागना और समर्पित करना है जिसके मन और हृदय ईश्वर प्रेम होता है उसके मन और हृदय में और कोई प्रेम नहीं होता है|

प्रेम क्या हैं और कितने प्रकार का हैप्रेम क्या हैं और कितने प्रकार का है


2.    माता-पिता का प्रेम :- 

                            माता-पिता का प्रेम सबसे पवित्र प्रेम होता है| माता पिता अपने बच्चों से निस्वार्थ से प्रेम करते हैं| परिवार को जोड़कर रखने का मार्ग भी प्रेम है| माता-पिता अपने बच्चों से अखंड और शाश्वत प्रेम करते हैं इसमें स्वार्थ, दव्स, लालच, किसी चीज की इच्छा के लिए कोई जगह नहीं होती है| उनके हृदय और अंतर्मन में माता-पिता अपने बच्चों के लिए त्याग, समर्पण, बलिदान और क्षमा आदि करते हैं यह प्रेम नहीं तो क्या है| माता-पिता का प्रेम प्रगाढ़ होता है| यदि बच्चों को कोई तकलीफ या दुख होता है तो माता-पिता को अनुभव हो जाता है उन्हें भी तकलीफ और दुख होता है| वह आपको दुख और तकलीफ में नहीं देख सकते| वह उन्हें सुख और आन्नद मे बदलने का अथक प्रयास या प्रयत्न करते हैं| वह अपने बच्चों के लिए किसी भी परिस्थिति या स्थिति हो उन्हें सुखी देखने के लिए बहुत समझौता करते हैं जो उन्हें पसंद नहीं वह भी खाते हैं, और करते हैं, देखते हैं, घूमने जाते हैं| यह अपने बच्चों के प्रति प्रेम नहीं तो क्या है प्रेम ही है जो मनुष्य को एक-दूसरे को जोड़कर और बांधकर रखा है गलत रास्ते पर नहीं जाने देता है, गलत व्यवहार, गलत दोस्तों, गलत आदत, इन सबको करने से रोकते है| हर माता-पिता बच्चों को अच्छे संस्कार, परवरिश और ऊचे शिखर पर देखना चाहते हैं यह होता है| माता-पिता का प्रेम जो आलोकीक और आनंद से भरा होता है|

प्रेम क्या हैं और कितने प्रकार का है

3.    बहन- भाई का प्रेम,  मित्र प्रेम :-

                                        यह प्रेम दो अंजाने मनुष्य के बीच होता है जो एक-दूसरे को मित्र बना देता है जो एक- दूसरे का कर्तव्य, जिम्मेदारी, सहयोग, साथ देना यह सब निभाते हैं इसे मित्र प्रेम कहते हैं| इस मित्र प्रेम में एक- दूसरे के ऊपर बहुत विश्वास होता है| इस प्रेम की नीव विश्वास पर होती है हर सुख और दुख में एक-दूसरे का साथ देते हैं| जैसे:- कृष्ण और सुदामा की मित्रा बहन- भाई का प्रेम, बहन- बहन का प्रेम और भाई- भाई का प्रेम यह प्रेम रक्त संबंधों के बीच होता है| इसमें प्रेम एक सीमा तक रहता है| बहन- भाई के बीच ऐसा घनिष्ठ प्रेम और स्नेह होता है जो एक- दूसरे के लिए त्याग, बलिदान, स्नेह और समर्पण आदि होता है यह भाई- बहन और बहन- बहन एवं भाई- भाई के बीच निस्वार्थ प्रेम होता है| प्रेम के बंधन में कभी-कभी कुछ समय के लिए दूरियां भी आ जाती है जो कुछ गलतफहमी के कारण होते हैं इस प्रेम में कर्तव्य और जिम्मेदारी पूर्ण होती है और एक- दूसरे को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है| जैसे:- राम, लक्षमण और भरत भाईयो का प्रेम, कृष्ण और बलराम का प्रेम किसी अनजान लड़की और लड़के के बीच प्रेम होना जो एक मित्र प्रेम और गर्लफ्रेंड एंड ब्वॉयफ्रेंड का प्रेम भी होता है| इस प्रेम में लड़की और लड़का मित्र के आधार पर एक- दूसरे से प्रेम करते हैं| एक- दूसरे के सुख और दुख मे साथ देते हैं| इस गर्लफ्रेंड एंड ब्वॉयफ्रेंड के प्रेम में शारिरिक संबंध नहीं होता है एक लड़की और एक लड़का है जो एक सीमा तक होता है|

4.    देशभक्ति, जन्मभूमि, कला, प्रकृति के प्रति प्रेम :-

                                                        मनुष्य के अंदर यह प्रेम भी निर्मम और स्वच्छ होता है मनुष्य में देशभक्ति के लिए प्रेम होता है, अपनी जन्म भूमि के लिए प्रेम होता है, किसी कला के प्रति प्रेम होता है प्रकृति के प्रति प्रेम होता है| मनुष्य देशभक्ति के प्रेम सब कुछ हदे पार कर जाता हैं कुछ चीजों का त्याग और समर्पण करना है कुछ नई चीजों को अपने जीवन में अपनाना है| जन्म भूमि से मनुष्य इतना प्रेम करता है कि वह अपने आपको मिटा सकता है जैसे सैनिक प्रेम करता हैं मनुष्य अपनी कला से इतना प्रेम करता है कोई से भी क्षेत्र की कला हो उस कला के लिए बहुत कठोर मेहनत करता है| सुख और दुख के आनंद को भी भूल जाता है इन सभी प्रेम में मनुष्य कभी बंधन तोड़ देता है सीमा को तोड़ देता है किसी के भी विरुद्ध जाकर कार्य कर सकता है कुछ परेशानी भी उठाते हैं त्याग, समर्पण और बलिदान आदि मांगता ही प्रेम जो देता है| वह सच्चा प्रेम करता है प्रेम करता है वह अपने अंतर्मन से करता है उसके मन में लालच, ध्वस, मोह- माया नहीं होता है यह प्रेम मनुष्य की कोई ना कोई घटना के कारण उन के मन और हृदय में जागृत या पनपता हैं|

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5.    पति पत्नी का प्रेम :- 

                            यह दो अनजान नर और नारी के बीच का प्रेम है जो विवाह होने के पश्चात करते हैं| यह प्रखंड व शाश्वत होता है| एक -दूसरे के प्रति प्रेम में कर्तव्य, जिम्मेदारी, स्वतंत्रा, त्याग, बलिदान यह सब होता है| यह प्रेम एक नर और नारी को एक पवित्र बंधन में बनता है यह प्रेम आत्मा से और शरीर से दोनों से होता है| यह प्रेम आनंद दाई होता है जो दो आत्माओ को एक करता हैं जिससे वह एक- दूसरे के अर्धांग बन जाते हैं ऐसा होता हैं पति पत्नी का प्रेम जो बहुत सुन्दर होता हैं|

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