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Saturday, September 12, 2020

माँ की ममत्व की पहचान

 माँ की ममत्व की पहचान :-

माँ की ममत्व की पहचान

एक स्त्री का जन्म लेने का जीवन सफल जब होता है| जब वह मां बनती है एक स्त्री के लिए मां बनने का सुख इस संसार का सबसे बड़ा सुख है| इस संसार में मां का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना जाता है क्योंकि जो जन्म देता है वही ईश्वर हैं तो एक संतान के लिए ही उसे जन्म देने वाली मां ही उसके लिए ईश्वर है| ईश्वर को भी इस धरती पर जन्म लेने के लिए मां की जरूरत होती है| जैसे :- राम को अवतार लेने के लिए कैकेय, कृष्ण को अवतार लेने के लिए देवकी, हनुमान का अवतार लेने के लिए अंजना मां बनी है|  एक स्त्री मां की ममता को तब तक समझ नहीं पाती जब तक स्वयं मां नहीं बन जाती जब पहली बार मां बनती है या गर्भवती होती है तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता वह सातवें आसमान पर होती है| वह अपने आपको संसार की सबसे खुशनसीब समझते हैं क्योंकि दुनिया की सबसे अनमोल चीज मिल जाती है| वह उसकी सन्तान जो उसे माँ कह कर पुकारेगी जब यह शब्द पहली बार एक स्त्री के कानों में पड़ते हैं तो वह शहद से ज्यादा मीठा और अमृतवाणी के सामान लगता है| मां बनना कोई अधिकार नहीं होता हैं एक स्त्री के लिए यह एक ऐसी जिम्मेदारी, कर्तव्य होता है जो स्त्री इसे पूरी ईमानदारी से निभाती हैं तो उसकी संतान अच्छी परवरिश के साथ बड़ी होती है, स्त्री की सबसे बड़ी परीक्षा होती है| मां बनना क्योंकि एक संतान की अच्छी परवरिश करना, अच्छे संस्कार देना, अच्छे विचार के साथ बड़ी करना, जिससे उसका व्यक्तित्व उत्तम बने जिससे एक अच्छा मानव बने जो वृद्ध अवस्था में उस मां का कैसे ख्याल रखेगी, उस पर निर्भर करता है कि एक माँ ने कैसे संस्कार दिए हैं और अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य कैसे निभाएं हैं| जब उस माँ की परीक्षा पूरी होती हैं| इस परीक्षा का परिणाम वृद्धावस्था में दिखाई देता है एक माँ क्या- क्या त्याग करती है, समर्पण करती है, कितना प्रेम या स्नेह करती हैं| यह हम सब जानते हैं फिर भी हम माँ की वैल्यू समझ नहीं पाते हैं| जो इस प्रकार है

1.    मां का प्रेम या स्नेह :- 

प्रेम या स्नेह करने की बात आती है तो सबसे पवित्र प्रेम या स्नेह मां करती है मां के प्रेम की कोई सीमा नहीं होती है| यह आसमान की तरह अनंत है| मां अपने बच्चों से निस्वार्थ प्रेम करती है| आपका और मां के रिश्ते में कितनी दूरियां आ जाए फिर भी मां के प्रेम और स्नेह में कभी कमी नहीं आती है| मां अपने प्रेम या स्नेह को ममता के रूप में देती है उनके प्रेम की कोई गहराई नहीं है| मां के प्रेम या स्नेह में कोई छल, कपट, लालचब मोह माया यह कुछ भी नहीं होता है बस शुद्ध प्रेम होता है मां का प्रेम अनमोल होता है मां के प्रेम की मिठास कभी कम नहीं होती है| बच्चों की उम्र कितनी ही क्यों ना हो बच्चे कैसे भी हो शारीरिक रूप से कमजोर, रंग रूप, मानसिक रूप से कमजोर मां के लिए अपना बच्चा अपना ही होता है प्रेम या स्नेह ममता वही रहती है क्योंकि माँ बच्चों से भाव या आत्मा से प्रेम करती है|

2.    मां का त्याग और समर्पण :- 

जब त्याग और समर्पण करने की बात आती है तो मां जो त्याग एवं समर्पण करती है| उसके आगे कुछ नहीं है क्योंकि मां बिना स्वार्थ के त्याग एवं समर्पण करती हैं| मां अपने जीवन के सारे सुख, खुशियां और आनंद को त्याग एवं समर्पण कर के अपने बच्चों के लिए खुशियां, आनंद और ऊचीत जीवन की कामना करती है| मां अपने बच्चों के लिए अपने शरीर और जीवन का त्याग एवं समर्पण कर देती है| मां बच्चों से त्याग एवं समर्पण के बदले कुछ नहीं मांगती है| बस खुशियों के अलावा मां के त्याग और समर्पण की कदर करनी चाहिए| हमें समय आने पर हम भी कर सकें जब बच्चे किसी चीज के लिए जिद्द करते हैं तो मां की परिस्थितियां कैसी भी हो चाहे उस चीज के लिए सक्षम या सामर्थे हो या ना हो उस कि हर जिद्द पूरी करती है| जब मां स्वयं बीमार या तकलीफ में हो तो यदि बच्चे को कोई तकलीफ हो जाए तो माँ अपने सारे दुख तकलीफ को भूलकर बच्चों पर ध्यान देती है| यदि मां कोई चीज पसंद है, कोई जगह उनकी मनपसंद, कोई सी वस्तु है यदि बच्चे को यह सब पसंद नहीं तो मां अपने बच्चों के लिए अपनी पसंद या नापसंद को त्याग और समर्पण करके बच्चों को जो पसंद या नापसंद हैं| उसे अपना लेती है माँ इतना त्याग और समर्पण करती हैं| इसका कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता 

            माँ का ममत्व क्या है 

3.    मां का धैर्य :- 

धैर्य की बात आती है तो मां के अंदर बहुत धैर्य रहता है मां अपने बच्चों के प्रति बहुत धैर्यवान होती है| यदि बच्चे के लिए कोई फैसला लेना है तो मां उसमें धैर्य से काम लेती है जब बच्चों को कोई दुख तकलीफ होती है तो मां ने धैर्य बनाए रखती है और बच्चों का हौसला बुलंद करती है मां अपने जीवन के प्रति काम के प्रति बहुत धैर्यवान होती हैं|

4.    मां का दायित्व :- 

दायित्व की बात आती है तो मां अपना दायित्व को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ निभाती है| मां अपने बच्चों के प्रति जन्म से लेकर जहां तक मां जीवित रहती हैं तब तक अपना दायित्व का निस्वार्थ निर्वाह करती रहती है मां बच्चों को अच्छे संस्कार देने में, अच्छी परवरिश करने में, अच्छी शिक्षा देने में, अच्छे व्यवहार, अच्छे आचरण देने में, अपना पूरा दायित्व को कृतज्ञता के साथ निभाती है| मां अपने बच्चे की छोटी-छोटी बातों के लिए हर दायित्व को निभाती हैं| बच्चे के जीवन के प्रति हर निर्णय को लेने के लिए अपने जीवन के निर्णय को एक साइड में रख कर अपने दायित्वों को बच्चों के प्रति निभाती है| माँ अपने दायित्व को निभाने के लिए कभी पीछे नहीं हटती है मां का दायित्व का कर्तव्य निभाना कोई सरल कार्य या बात नहीं है| यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी के साथ निभाया जाता है| एक मां अपने बच्चों के दायित्व के साथ-साथ पूरे परिवार का दायित्व भी निभाती है|

5.    मां की कोमलता :- 

कोमलता की बात आती है तो मां की मन की कोमलता की धनि है| जब बच्चा रोता है मां जब उसे अपने हाथ में लेकर चुप कराती है तो बच्चा चुप हो जाता है जब बच्चा मां की गोद में सोता है तो वह सबसे ज्यादा अपने आपको सुरक्षित समझता है| मां की गोद और आँचल सबसे कोमल महसूस करता है मां की ममता की बात ही निराली है| मां बच्चों को कोमलता से पालती है प्रेम और कोमलता के साथ खाना खिलाती है, रखना, सुलाना करती है|

6.    मां की सह्रदयता :- 

सह् ह्रदयता की बात आती है तो मां की सह ह्रदयता बहुत होती है| मां अपने बच्चों के साथ जब बात करती है तो बहुत हर्ष, उल्लास से सह ह्रदयता से करती है और साथ-साथ पूरे परिवार के साथ सह ह्रदयता रखती है| अपने बच्चे के प्रति दिल या मन में कोई मलाल और बुरी विचार नहीं रखती है| मां का हृदय बहुत ही कोमल और विनम्र पवित्र होता है| मां सबसे अनंत प्रेम और स्नेह करती है यदि बच्चों को थोड़ी सी तकलीफ भी हो जाती है तो सबसे पहले मां को दुख होने लगता है और रोने लगती है और चिंता करने लगती है|

7.    मां की क्षमाशीलता :- 

क्षमाशीलता की बात आती है तो मां की ममता जैसी क्षमाशीलता किसी और में नहीं होती है बच्चे अपनी मां से कुछ भला बुरा कह देते हैं तो मां उसे अपने हृदय पर नहीं लेती है और क्षमा कर देती है बच्चे मां से कुछ गलत बोल देते हैं, उनकी बात का विरोध करते हैं, उनकी बात नहीं मानते हैंं, अनुचित व्यवहार करते हैं, ऊची आवाज में बोलते हैं यह सब बोले हैं तो बच्चे जब माफी मांगते हैं तो वह कह देती है कि मैंने तो तुम्हें तभी क्षमा कर दिया था जब तुम ऐसा बोल रहे थे| मां का हृदय बहुत कोमल होता है| माँ पूरी उम्र अपने बच्चे इसी प्रकार की गलती और कार्य एवं बात को क्षमा करती रहती हैं| मां का मन बच्चो ही क्षमा किऐ बगेर नहीं रह पाती हैं भले ही मां का हृदय कितना ही दुुुखा आऐ और छलि किया हो पर मां की मन में कोई लालच, मलाल, छल नहीं होता है| पवित्र मन होता है वह कुछ देर नाराज रहती है फिर क्षमा कर देती है| मां का हृदय बहुत विशाल होता है जो क्षमाशीलता से भरी होती है|

8.    मां सहनशीलता की प्रतिमूर्ति हैं :- 

मां सहनशीलता की प्रतिमूर्ति होती है यदि बच्चों पर कोई तकलीफ आती है तो मां उसे तकलीफ और समस्या का डटकर सामना करती है| पूरे दुख को अपने ऊपर ले कर उसे सहन कर जाती है जब बच्चे मां से दूर होते हैं तो मां उस समय उस दुख को सहन करके सहनशीलता की प्रतिमूर्ति बन जाती है| सहन करने की क्षमता बहुत होती है इसकी गहराई को नहीं नापा जा सकता कभी मां टूटकर नहीं बिखरती है| एक बच्चे को जन्म देती हुई मां कितनी सहनशील होती है इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता और सबसे ज्यादा दर्द एक माँ सहन करती है

9.    मां के चरण और आंचल का सुख :- 

मां के चरणों में जन्नत होती है| हमेशा हर रोज मां के चरण स्पष्ट करने चाहिए मां का आशीर्वाद अनमोल वरदान है| वह आपकी ख़ुशी और सफलता की दुआएं देती है| मां की ममता का आंचल जैसा सुख और शांति सुरक्षा का स्थान बच्चों के लिए कोई और हो ही नहीं सकता जब बच्चा छोटा होता है तो मां की गोद में बेझिझक और आनंद मुस्कुराहट के साथ सोता है| यदि जब भी शांति और आनंद से सोना है तो मां की गोद में सर रखकर सोओ|


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