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Friday, September 11, 2020

माँ का ममत्व क्या है

माँ का ममत्व क्या है :-

माँ का ममत्व क्या है

माँ के बिना पृथ्वी पर जीवन की उम्मीद नहीं की जा सकती, अगर धरती पर माँ न होती तो हम सभी का अस्तित्व भी न होता। माँ दुनिया का एक ऐसा बेहद शक्तिशाली शब्द है जिसका उच्चारण व लेखन बेहद सरल है। लेकिन उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन करना बेहद कठिन होता है। माँ मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर एक ऐसी पवित्र आत्मा है जो अपनी संतान के अच्छे जीवन के लिए इस हद तक समर्पित है कि वो अपने सुख-दुख सब कुछ भूल जाती है और संतान के प्यार, स्नेह व उचित लालन-पालन के दायित्व के लिए दुनिया के हर एक नाते-रिश्ते को पीछे छोड़ देती है, हर विकट परिस्थिति से वो संतान की खातिर भिड़ने के लिए हर समय तैयार रहती है, हर संकट में वो संतान पर जान न्यौछावर करने के लिए तैयार रहती है। वैसे दुनिया में हर महिला की चाहत होती है कि वो माँ के इस जीवन को जीये और उसके आलौकिक सुख का आनंद ले। क्योंकि सनातन धर्म व अन्य सभी धर्मों में माना जाता है कि हमारी धरा पर माँ शब्द का धारण करने वाली ममता की प्रतिमूर्ति माँ के इस नाम में हम सभी के पालनहार ईश्वर खुद वास करते है। वैसे भी हमारे देश में आदिकाल से लेकर आज के आधुनिक व्यवसायिक काल में भी माँ को परिवार व समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। भारत में माँ को संतान के प्रति निस्वार्थ जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाली सच्चे त्याग-समर्पण, स्नेह, धैर्य, दायित्व, कोमलता, सहृदयता, क्षमाशीलता व सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता है। वैसे भी माँ को इस धरती पर ईश्वर की सबसे महत्वपूर्ण शानदार कृति माना जाता है। आज के आधुनिक युग में भी सम्पूर्ण विश्व में एक नारी के रूप में जीवनदायिनी माँ का सबसे जरूरी कर्त्तव्य है कि वह अपनी संतान रूपी नई पौध के जीवन में संस्कारों के बीज डालकर उसमें खाद-पानी सही समय से लगा कर, उसकी नैतिक मूल्यों की जड़ों को परिपक्वता प्रदान करके सुसंस्कृत, सुसमृद्ध, सुदृढ़ करके देश का सुयोग्य नागरिक बनाए। जिससे परिवार, समाज, गाँव, शहर, यहाँ तक की देश भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर सकें। वैसे हर महिला एक माँ के रूप में इसके लिए अथक परिश्रम व प्रयास करती है। सत्य बात तो यह है कि माँ से बढ़ कर इस दुनिया में कोई रिश्ता-नाता नहीं होता है और यदि माँ न हो तो यह दुनिया एक वीरान उजाड़ रेगिस्तान से ज्यादा कुछ नहीं है।


धरा पर माँ ही एक ऐसी शक्तिशाली प्राणी है जो हमें जन्म देती है और हमारे जीवन की सबसे पहली गुरु होती है। जो हमको उंगली पकड़ कर चलना सिखाती है, जिसका सिखाया कारगर लोक व्यवहार का ज्ञान हमारे जीवन की राह को सरल बनाता है। माँ वो होती है जो अपने बच्चे की मन की बात को उसके कहने से पहले जान लेती है, जो अपने बच्चों की आँखों को देखते ही उनकी खुशी व दर्द को भांप लेती है, हमारी हर हरकत को दूर से ही देखकर जान लेती है। माँ ईश्वर का वो सुखद अहसास है जो हर किसी नारी को नहीं मिलता जिस महिला को यह अहसास मिलता है वो बहुत खुशकिस्मत व भाग्यशाली होती है। माँ का कर्ज एक ऐसा कर्ज है जो संतान अपनी पूरी जिन्दगी भर की कमाई देकर यहाँ तक भी जान न्यौछावर करके भी अदा नहीं कर सकती है, सच यह है कि माँ का कर्ज हम सात जन्म तक भी नहीं उतार सकते है। यहाँ तक की संतान माँ का प्रिय शिष्य होने के बाद भी कभी भी अपनी माँ को कोई गुरु दक्षिणा तक नहीं दे पाती है। मैं अपनी चंद पंक्तियों के द्वारा माँ के रूप में सबसे शक्तिशाली महिला शक्ति को नमन करता हूँ।
विश्व में माँ ही एक ऐसा शब्द है जिसे दुनिया में कदम रखने वाला हर बच्चा अपने मुंह से इस दुनिया में आने के बाद सबसे पहले लेता है। इस धरातल पर माता जी व पिता जी के रूप में ही साक्षात उस भगवान से मुलाकात होती है जो स्पष्ट रूप से नजर आते हैं जो अपने बच्चों को बिना किसी स्वार्थ के पालते है, पढ़ाते लिखाते है और हमेशा भगवान से यही प्रार्थना करते हैं की हमारे बच्चों पर कोई कष्ट ना आये और उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में जबरदस्त सफलता के साथ उनका मुकाम हासिल हो। माँ के बिना जीवन की उम्मीद भी नहीं की जा सकती, अगर माँ न होती तो दुनिया में हमारा भी अस्तित्व न होता। इस दुनिया में माँ दुनिया का सबसे सरल शब्द है जिसमें जीवन देने वाले भगवान साक्षात खुद वास करते हुए बच्चों का लालनपालन करते हैं।
माँ का ममत्व क्या है
ब्रह्मांड में एक माँ का रिश्ता ही ऐसा होता है जिसमें माता बिना किसी लोभ-लालच के अपने बच्चों के लिए हर समय कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती है। यह बात केवल इंसानों में ही नहीं बल्कि जल, थल व वायु में पाये जाने वाले हर प्रकार के जीव-जंतु में यही होता है। अगर अपने बच्चों पर कोई खतरा या आंच आने वाली होती है तो माँ ही सबसे पहले आगे आकर खतरें को अपने ऊपर ले लेती है और बच्चों के जीवन को सुरक्षित रखने के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर देती है।
वैसे अक्सर कहा जाता है कि दुनिया में सबसे अनमोल निस्वार्थ भाव का रिश्ता एक माता का अपने बच्चों से होता है। एक बच्चे का जब जन्म होता है, तो उसका पहला रिश्ता माँ से होता है। एक माँ अपने बच्चे को पूरे 9 माह अपनी कोख में रखने के बाद असहनीय पीड़ा सहते हुए उसे जन्म देती है और इस दुनिया में लाती है। इन नौ महीनों में बच्चे और माँ के बीच एक बेहद भावनात्मक, अदृश्य प्यार भरा बहुत ही गहरा रिश्ता बन जाता है। यह रिश्ता बच्चे के जन्म के बाद जब साकार होता है, तो उसके बाद ताउम्र जीवन पर्यन्त अपने बच्चों से बना रहता है। माँ का अपने बच्चों से रिश्ता इतना प्रगाढ़ और निस्वार्थ प्रेम से भरा होता है, कि बच्चे को जरा ही तकलीफ होने पर भी माँ बेहद बेचैन हो उठती है। वहीं तकलीफ के समय बच्चा भी सबसे पहले अपनी प्यारी माँ को ही याद करता है। बच्चे चाहे कितने ही बड़े हो जाये लेकिन उनके लिए माँ का दुलार और प्यार भरी पुचकार एक बहुत बड़ी सकारात्मक उर्जा व कारगर औषधि का काम करती है, वह उनके जीवन में नयी ऊर्जा का संचार कर देती हैं।

इसलिए ही अक्सर कहा जाता है कि इस दुनिया में अगर कही जन्नत है तो वो ईश्वर रूपी साक्षात माँ के चरणों में व उसके आचल की छांव में होती है। इसलिए ही माता व बच्चों के ममता और स्नेह के इस अनमोल रिश्ते को संसार का सबसे खूबसूरत रिश्ता कहा जाता है। हकीकत में दुनिया का कोई भी रिश्ता इतना प्यार भरी भावनाओं से युक्त, मर्मस्पर्शी और निस्वार्थ पूर्ण नहीं हो सकता है, जितना किसी माँ का अपने बच्चों से होता है।

अपने बच्चों के प्रति माँ बहुत ही संवेदनशील होती है, माँ को अपने बच्चों के भविष्य की सबसे ज्यादा चिंतित होती है, मगर जब पता चलता है की उसका बच्चा गलत रास्ते पर चल निकला है तो माँ ही एक गुरु की तरह उसे अपने पास बुला कर समझाती है और जरूरत पड़ने पर उसकी पिटाई करके बच्चों को सुधार देती है, जीवन में माँ से बड़ा कोई कारगर गुरु नहीं होता है। हर माँ अपने बच्चों के प्रति निस्वार्थ भाव से जीवन भर समर्पित रहती है। माँ की ममता व त्याग की गहराई को मापना भी असंभव है और ना ही उनके एहसानों को सात जन्मों तक चुका पाना संभव है। लेकिन हमको ध्यान रखना चाहिए हम हमेशा उनका ध्यान रखे और माता के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को प्रकट करना हमारा कर्तव्य है। उनकी जरूरतों का ध्यान रखना हमारा धर्म है।

दुनिया में माँ के प्रति इन्हीं भावों को व्यक्त करने के उद्देश्य से विश्व में "मातृ-दिवस" मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से माँ के लिए समर्पित है। इस दिन को दुनिया भर में लोग अपने तरीके से मनाते हैं। कहीं पर माँ के लिए पार्टी का आयोजन होता है तो कहीं उन्हें तरह-तरह के उपहार और शुभकामनाएं दी जाती है। कहीं पर पूजा अर्चना तो कुछ लोग माँ के प्रति अपनी भावनाएं लिखकर जताते हैं। लोगों का इस दिन को मनाने का तरीका चाहे कोई भी हो, लेकिन बच्चों में माँ के प्रति प्रेम और इस दिन के प्रति उत्साह चरम पर होता है जो कि जीवन में हर पल हमेशा बना रहना चाहिए। बच्चों को हमेशा माँ की भावनाओं का आदर करना चाहिए।

जब भी मैं यह सोचता हूँ कि माँ और ईश्वर में कौन बड़ा है, तो यह सोच कर मैं भी बड़ी असंजस में पड जाता हूँ, किसी के भी जीवन में एक माँ, सर्वश्रेष्ठ और सबसे महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि कोई भी उनके जैसा सच्चा और वास्तविक नहीं हो सकता। माँ हमेशा हमारे अच्छे और बुरे समय में साथ रहकर हौसलाअफजाई करती रहती है। माँ शब्द हम सब के जीवन का पहला वो शब्द होता है जिसे हम हर दुःख-दर्द में सबसे पहले लेते है। भगवान का नाम भी इंसान दुःख-दर्द में भूल जाता है मगर व्यक्ति माँ का नाम लेना कभी नहीं भूलता। इसलिए माँ हम सभी के जीवन में बहुत ही अनमोल व महत्वपूर्ण होती है और उसका स्थान साक्षात ईश्वर के बराबर होता है। 

विभिन्न ग्रंथों में माँ की महिमा का हमको बखान मिलता है जैसे कि “माँ और बेटे का इस जग में है बड़ा ही निर्मल नाता, पूत कपूत सुने है पर न सुनी कुमाता” ये बेहद प्राचीन वाक्य हमें माँ की महिमा के बारे में बहुत ही अच्छे ढंग से समझा देता है। माँ हमारे जीवन का वो हिस्सा होती है जिसके बिना बेफिक्र से जीवन जीना बहुत कठिन हो जाता है। जब तक बच्चों के सिर पर माँ का हाथ है तबतक बच्चों का उत्साह अलग ही होता है चाहे वो स्वयं ही बच्चे वालें क्यों न हो जाये। 
 
वैसे भी जीवन में वो बच्चे बहुत ही भाग्यशाली व अमीर होते है जिनकी पास माँ रूपी अनमोल दौलत का आशिर्वाद हमेशा बना रहता है। क्योंकि बिना माँ के ये दुनिया उजड़ी-उजड़ी सी लगती है। मैं कभी-कभी सोचता हूँ की माँ अगर तुम न होती तो मेरा क्या होता इस जालिम दुनिया में मुझे कौन इतना लाड़ प्यार दुलार करता तुम्हारे बिना मेरी कोई अहमियत ना होती, कोई हैसियत ना होती। 

वैसे भी जीवन में वो बच्चे बहुत ही भाग्यशाली व अमीर होते है जिनकी पास माँ रूपी अनमोल दौलत का आशिर्वाद हमेशा बना रहता है। क्योंकि बिना माँ के ये दुनिया उजड़ी-उजड़ी सी लगती है। मैं कभी-कभी सोचता हूँ की माँ अगर तुम न होती तो मेरा क्या होता इस जालिम दुनिया में मुझे कौन इतना लाड़ प्यार दुलार करता तुम्हारे बिना मेरी कोई अहमियत ना होती, कोई हैसियत ना होती। यदि आर्टिकल अच्छा लगा तो आगे शेयर करे और कमेन्ट करे

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